रिश्ते घमंड शायरी
आसमा इतनी बुलंदी पे जो इतराता है !!
भूल जाता है कि ज़मीन से नज़र आता है !!
वो छोटी-छोटी उड़ानों पे गुरूर नहीं करता हैं !!
जो परिंदा अपने लिए आसमान ढूढ़ता हैं !!
यूँ बदस्तूर जीना जारी तो रहा !!
लेकिन तू नहीं फिज़ा नहीं बयां नहीं निशां नहीं !!
घमण्ड किसी का नही रहा टूटने से पहले !!
गुल्लक को भी लगता था सारे पैसे उसी के है !!
घमंङ में हस्तियाँ और तूफान में कश्तियाँ !!
अक्सर डूब जाया करती हैं जनाब !!
केवल अहंकार ही ऐसी दौड़ है !!
जहाँ जीतने वाला हार जाता है !!
घमंड तो उस इंसा को भी नहीं होता !!
जब कोई अवॉर्ड जीतता है तो वो भी झुक्कर लेता है !!
मैं एक हाथ से सारी दुनिया के साथ लड़ सकता हूँ !!
बस मेरा दुसरा हाथ तेरे हाथ में होना चाहिए !!
मुझसे किसी का दिल नहीं तोड़ा जाता !!
पर हाँ घमंड तोड़ने का हुनर है मुझमें !!
चाय के शौकीन हो तो क्या !!
यूं बात-बात पे उबालना अच्छा तो नहीं !!
घमंड नहीं मुझे खुद पर !!
बस कुछ रिश्तो ने खामोश रहना सिखा दिया !!
अपने किरदार का किरायदार कभी गुरूर को मत बनाना !!
नहीं तो तुम उसके नहीं वो तुम्हारा मालिक बन जाएगा !!
ज़रूरत तोड़ देती हैं इंसान के घमंड को !!
अगर न होती मजबूरी तो हर बंदा खुदा होता !!
मुझे तलाश है जो मेरी रुह से प्यार करे !!
वरना इन्सान तो पैसों से भी मिल जाया करते हैं !!
मैंने उनका गुरूर कुछ ऐसे तोड़ दिया !!
आँखों को चूमा उनकी और होठों को छोड़ दिया !!
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