गम है आवारा अकेले में भटक जाता है !!
जिस जगह रहिये वह मिलते-मिलाते रहिये !!
हर आदमी में होते है 10-20 आदमी !!
जिस को भी देखना हो कई बार देखना !!
बरखा सब को दान दे जिसकी जितनी प्यास !!
मोती सीये सीप में माटी में घास !!
जीवन के दिन रैन का कैसे लगे हिसाब !!
दीमक के घर बैठ कर लेखक लिखे किताब !!
ईसा अल्लाह ईश्वर सारे मंतर सीख !!
जाने कब किस नाम से मिले ज्यादा भीख !!
युग युग से हर बाग़ का ये ही एक उसूल !!
जिसको हंसना आ गया वो ही मट्टी फूल !!
स्टेशन पर ख़त्म की भारत तेरी खोज !!
नेहरू ने लिखा नहीं कुली के सर का बोझ !!
सीता रावण राम का करें विभाजन लोग !!
एक ही तन में देखिये तीनो का संजोग !!
सुना है अपने गाँव में रहा न अब वह नीम !!
जिसके आगे मंद थे सारे वैध-हकीम !!
चीखे घर के द्वार की लकड़ी हर बरसात !!
कटकर भी मरते नहीं पेड़ों में दिन-रात !!