एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक !!
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा !!
उस के दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा !!
वो भी मेरी ही तरह शहर में तन्हा होगा !!
हर घड़ी ख़ुद से उलझना है मुक़द्दर मेरा !!
मैं ही कश्ती हूँ मुझी में है समुंदर मेरा !!
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता !!
मुझे गिरा के अगर तुम सँभल सको तो चलो !!
दिन सलीक़े से उगा रात ठिकाने से रही !!
दोस्ती अपनी भी कुछ रोज़ ज़माने से रही !!
उस को रुख़्सत तो किया था मुझे मालूम न था !!
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला !!
दिल में न हो जुरअत तो मोहब्बत नहीं मिलती !!
ख़ैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती !!
नक्शा उठा के और कोई शहर देखिए !!
इस शहर में तो सब से मुलाकात हो गई !!
गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया !!
होते ही सुब्ह आदमी ख़ानों में बट गया !!
नक़्शा ले कर हाथ में बच्चा है हैरान !!
कैसे दीमक खा गई उस का हिन्दोस्तान !!