बे-नाम सा ये दर्द ठहर क्यूँ नहीं जाता !!
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूँ नहीं जाता !!
बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो !!
चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे !!
नक़्शा उठा के कोई नया शहर ढूँढिए !!
इस शहर में तो सब से मुलाक़ात हो गई !!
हम लबों से कह न पाए उन से हाल-ए-दिल कभी !!
और वो समझे नहीं ये ख़ामुशी क्या चीज़ है !!
सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें !!
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता !!
गिरजा में मंदिरों में अज़ानों में बट गया !!
होते ही सुब्ह आदमी ख़ानों में बट गया !!
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने !!
किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है !!
ये शहर है कि नुमाइश लगी हुई है कोई !!
जो आदमी भी मिला बन के इश्तिहार मिला !!
दुनिया जिसे कहते हैं जादू का खिलौना है !!
मिल जाए तो मिट्टी है खो जाए तो सोना है !!
इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझे !!
रौशनी ख़त्म न कर आगे अँधेरा होगा !!