कबीर लहरि समंद की, मोती बिखरे आई !!
बगुला भेद न जानई, हंसा चुनी-चुनी खाई !!
जब गुण को गाहक मिले, तब गुण लाख बिकाई !!
जब गुण को गाहक नहीं, तब कौड़ी बदले जाई !!
कबीर कहा गरबियो, काल गहे कर केस !!
ना जाने कहाँ मारिसी, कै घर कै परदेस !!
हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना !!
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना !!
कहत सुनत सब दिन गए, उरझि न सुरझ्या मन !!
कही कबीर चेत्या नहीं, अजहूँ सो पहला दिन !!