चलती चक्की देख के दिया कबीरा रोये !!
दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोए !!
मल मल धोएं शरीर को धोएँ ना मन का मैल !!
नहाएं गंगा गोमती रहें बैल के बैल !!
बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिलिया कोय !!
जो दिल खोजा आपना मुझसे बुरा न कोय !!
माटी कहे कुमार से तू क्या रोंदे मोहे !!
एक दिन ऐसा आएगा मैं रोंदुंगी तोहे !!
पानी केरा बुदबुदा अस मानस की जात !!
देखत ही छुप जाएगा है ज्यों सारा परभात !!
मलिन आवत देख के कलियन कहे पुकार !!
फूले फूले चुन लिए कलि हमारी बार !!
काल करे सो आज कर आज करे सो अब !!
पल में परलय होएगी बहुरि करेगा कब !!
ज्यों तिल माहि तेल है ज्यों चकमक में आग !!
तेरा साईं तुझ ही में है जाग सके तो जाग !!
जहाँ दया तहा धर्म है जहाँ लोभ वहां पाप !!
जहाँ क्रोध तहा काल है जहाँ क्षमा वहां आप !!
जो घट प्रेम न संचारे जो घट जान सामान !!
जैसे खाल लुहार की सांस लेत बिनु प्राण !!
जल में बसे कमोदनी चंदा बसे आकाश !!
जो है जा को भावना सो ताहि के पास !!
जाती न पूछो साधू की पूछ लीजिये ज्ञान !!
मोल करो तलवार का पड़ा रहने दो म्यान !!
ते दिन गए अकारथ ही संगत भई न संग !!
प्रेम बिना पशु जीवन भक्ति बिना भगवंत !!
तीरथ गए से एक फल संत मिले फल चार !!
सतगुरु मिले अनेक फल कहे कबीर विचार !!
तन को जोगी सब करे मन को विरला कोय !!
सहजे सब विधि पाइए जो मन जोगी होए !!
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