Husn ki mallika shayari
तेरे हुस्न को परदे की ज़रुरत ही क्या है !!
कौन होश में रहता है तुझे देखने के बाद !!
जब से देखा हैं उन्हें मुझे अपना होश नहीं !!
जाने क्या चीज़ वो नज़रो से मुझे पिला देतें है !!
हुस्न को शर्मसार करना ही !!
इश्क़ का इंतिक़ाम होता है !!
तुझे नाज है तु हुस्न है .तेरे गुलिस्ता की !!
मुझे फक्र है मैं इश्क हूँ !!
तुझे तड़पा न दूं तो कमाल क्या !!
कहाँ तक जफा हुस्न वालों के सहते !!
जवानी जो रहती तो फिर हम न रहते !!
साकिब लखनवी !!
हुस्न यूँ इश्क़ से नाराज़ है अब !!
फूल ख़ुश्बू से ख़फ़ा हो जैसे !!
इफ़्तिख़ार आज़मी !!
तेरा हुस्न वो कातिल है ज़ालिम !!
जो क़त्ल तो करता है और !!
हाथ में तलवार भी नही रखता !!
न पूछो हुस्न की तारीफ़ हम से !!
मोहब्बत जिस से हो बस वो हसीं है !!
आदिल फ़ारूक़ी !!
हुस्न में नज़ाक़त इश्क़ में शराफत !!
ऊफ़्फ़ !!
एक मरने न दे ,दूजा जीने न दे !!
न देखना कभी आईना भूल कर देखो !!
तुम्हारे हुस्न का पैदा जवाब कर देगा !!
बेख़ुद देहलवी !!
इतने हिजाबों पर तो ये आलम है हुस्न का !!
क्या हाल हो जो देख लें पर्दा उठा के हम !!
जिगर मुरादाबादी !!
वो अपने हुस्न की ख़ैरात देने वाले हैं !!
तमाम जिस्म को कासा बना के चलना है !!
अहमद कमाल परवाज़ी !!
शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास !!
दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं !!
फ़िराक़ गोरखपुरी !!
तेरी हुस्न की क्या तारीफ करू ए जालिम !!
तेरी तुलना करने में तो आप्सरायो का चेहरा भी !!
आँखों से ओझल हो जाता है !!
हुस्न भी तेरा अदाए भी तेरी !!
नखरे भी तेरी शोखिया भी तेरी !!
बस इश्क़ मेरा रहने दो !!
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