Hindi Kavita on feelings
किस धन का मैं अंहकार करू !!
जो अंत में मेरे प्राणों को बचा ही नहीं पाएगा !!
किस तन पे मैं अंहकार करू !!
जो अंत में मेरी आत्मा का बोझ भी नहीं उठा पाएगा !!
फ़िक्र इन आंखों में परिवार का रहता है !!
आजकल इंतजार रविवार का रहता है !!
जरुरते ना हो जाए कहीं कमाई से महंगी !!
ज़िक्र चाय के साथ अखबार का रहता है !!
लग ना जाए कहीं मुस्कुराने पर भी टैक्स !!
डर इस बदलती सरकार का रहता है !!
दिला दे मुझे एक लंबी छुट्टी इस काम से !!
इंतजार किसी एक ऐसे तार का रहता है !!
जख्मी नहीं होता अब मैं खंजरों के वार से !!
बोझ हर दिन दिल पर तलवार का रहता है !!
सह लेता हूं भली बूरी हर बात खमोशी से !!
कर्ज मुझ पर मेरे संस्कार का रहता है !!
कहा गवाता जा रहा है खुद को भागदौड़ में !!
सवाल चेहरे पर पड़ी दरार का रहता है !!
कमा लू मैं लाख अपना ईमान बेचकर !!
फिर वजूद कहा मेरे किरदार का रहता है !!
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