Fikar shayari
फिकर है सब को ,खुद को साबित करने की !!
जैसे ये ज़िंदगी ज़िंदगी नही कोई इल्ज़ाम है !!
फ़िक्र तो तेरी आज भी है !!
बस जिक्र का हक नही रहा !!
कितनी फ़िक्र है कुदरत को मेरी तन्हाई की !!
जागते रहते हैं रात भर सितारे मेरे लिए !!
जिक्र तो छोड़ दिया मैंने उसका !!
लेकिन कम्बख्त फिक्र नहीं जाती !!
टूटे दिल की अपनी ना फ़िकर पर उसकी फ़िकर किये जा रहा हूँ !!
समझ नही आता कि ये इश्क़ हैं या कोई हद किये जा रहा हूँ !!
फ़क्र ये के तुम मेरे हो !!
फ़िक्र ये पता नही कब तक !!
चाहत फिक्र इम्तेहान सादगी वफा !!
मेरी इन्हीं आदतों ने मुझे मरवा दिया !!
मुस्कान के सिवा कुछ न लाया कर चेहरे पर !!
मेरी फ़िक्र हार जाती है ,तेरी मायूसी देखकर !!
करू क्यों फ़िक्र की मौत के बाद जगह कहाँ मिलेगी !!
जहाँ होगी महफिल ,मेरे यारो की मेरी रूह वहाँ मिलेगी !!
अब नही करेंगें हम फिक्र तेरी !!
क्युकी तुम्हारी फिक्र तो जमाना करता हैं !!
तुम अपनी फ़िक्र करो जनाब !!
हम तो पहले से ही बदनाम हैं !!
जो लोग सबकी फिक्र करते हैं !!
अक्सर उन्हीं की फिक्र करने वाला कोई नहीं होता हैं !!
फ़िक्र ना होती तेरी तो कब के ज़िंदगी से दर गये होते !!
तुम ना होते जो साथ हमारे हम तो कब के मर गये होते !!
वो मेरी फ़िक्र तो करता है मगर प्यार नहीं !!
यानी पाज़ेब में घुँघरू तो हैं झंकार नहीं !!
कभी आओ बैठते है बतलाते है !!
दुनिया की फिक्र छोड़ दिल की सुनाते है !!
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