dosti ka farz shayari
पिता जी का फर्ज
फर्ज था जो मेरा निभा दिया मैंने !!
उसने मांगा वह सब दे दिया मैंने !!
वो सुनके गैरों की बातें बेवफा हो गई !!
समझ के ख्वाब उसको आखिर भुला दिया मैंने !!
पर टूट न जाएं हम इसलिए दिखाता नहीं !!
प्यार उसके दिल में भी होती मां के जैसी !!
पर वो कभी उस प्यार को जताता नहीं !!
थक जातें है कंधे काम के भोज से अक्सर !!
फिर भी वो कंधों को झुकाता नहीं !!
पूरी करता है हर इक जरूरत को हमारी !!
पर कभी घर के ख़र्च का अहसास दिलाता नहीं !!
हर ख्वाहिश के खातिर लड़ जाता जग से हमारी !!
पर अपनी ख्वाहिशों को हमसे दिखाता नहीं !!
वो जो दिखता है ऊपर सख्त हमें अक्सर !!
पर अपने प्यार को हमसे छुपा पाता नहीं !!
अक्सर देखा है हमने मां को लड़ते जरूरतों के खातिर !!
पर वो अपने दर्द को किसी को दिखा पाता नहीं !!
शायद यही सारी खूबियों के कारण बनाया है रब ने !!
वरना धरती पे वो पिता को बनाता नहीं !!
लोगों को कहते सुना है अक्सर हमने भी !!
क्या निभाएँ है फर्ज होने के पिता के !!
तो दोस्त उनसे भी कभी पूछो कैसी कमी होती है पिता !!
जिसके पिता अपने पिता का फर्ज़ निभाते नहीं !!
फर्ज था जो मेरा निभा दिया मैंने !!
उसने मांगा वह सब दे दिया मैंने !!
वो सुनके गैरों की बातें बेवफा हो गई !!
समझ के ख्वाब उसको आखिर भुला दिया मैंने !!
मृत्युंजय इस घट में अपना !!
कालकूट भर दे तू आज !!
ओ मंगलमय पूर्ण सदाशिव !!
रुद्र-रूप धर ले तू आज !!
चिर-निद्रित भी जाग उठें हम !!
कर दे तू ऐसी हुंकार !!
मदमत्तों का मद उतार दे !!
दुर्धर तेरा दंड-प्रहार !!
हम अंधे भी देख सकें कुछ !!
धधका दे प्रलय-ज्वाला;
उसमें पड़कर भस्मशेष हो !!
है जो जड़ जर्जर निस्सार !!
यह मृत-शांति असह्य हो उठी !!
छिन्न इसे कर दे तू आज !!
मृत्युंजय इस घाट में अपना !!
कालकूट भर दे तू आज !!
हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं !!
हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं !!
जिगर मुरादाबादी !!
हयात ले के चलो कायनात ले के चलो !!
चलो तो सारे ज़माने को साथ ले के चलो !!
मख़दूम मुहिउद्दीन !!
बारे दुनिया में रहो ग़म-ज़दा या शाद रहो !!
ऐसा कुछ कर के चलो याँ कि बहुत याद रहो !!
मीर तक़ी मीर !!
मृत्युंजय इस घट में अपना !!
कालकूट भर दे तू आज !!
ओ मंगलमय पूर्ण सदाशिव !!
रुद्र-रूप धर ले तू आज !!
चिर-निद्रित भी जाग उठें हम !!
कर दे तू ऐसी हुंकार !!
मदमत्तों का मद उतार दे !!
दुर्धर तेरा दंड-प्रहार !!
हम अंधे भी देख सकें कुछ !!
धधका दे प्रलय-ज्वाला;
उसमें पड़कर भस्मशेष हो !!
है जो जड़ जर्जर निस्सार !!
यह मृत-शांति असह्य हो उठी !!
छिन्न इसे कर दे तू आज !!
मृत्युंजय इस घाट में अपना !!
कालकूट भर दे तू आज !!