दोस्ती का फर्ज शायरी
मारा कोई भी लफ्ज़ माँ के प्रति निभाया गया कोई भी फर्ज !!
माँ का कर्ज अदा नहीं कर सकता !!
हर एक खुशी यू फ़र्ज़ निभा कर चली गयी !!
मेरा पता गमो को बता कर चली गयी !!
जिंदगी में कोई दर्द ऐसे हैं जो जीने नहीं देते !!
और कुछ फर्ज ऐसे हैं जो मरने नहीं देते !!
मेरे ऊपर कर्ज है तेरा !!
तेरी भक्ति फर्ज है मेरा !!
मारा कोई भी लफ्ज़ माँ के प्रति निभाया गया कोई भी फर्ज !!
माँ का कर्ज अदा नहीं कर सकता !!
उनका जो फ़र्ज़ है वो अहल ए सियासत !!
जाने मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहां तक पहुंचे !!
हम को मिटा सके ये ज़माने में दम नहीं !!
हम से ज़माना ख़ुद है ज़माने से हम नहीं !!
जिगर मुरादाबादी !!
हयात ले के चलो कायनात ले के चलो !!
चलो तो सारे ज़माने को साथ ले के चलो !!
मख़दूम मुहिउद्दीन !!
कैसे आकाश में सूराख़ नहीं हो सकता !!
एक पत्थर तो तबीअत से उछालो यारो !!
बारे दुनिया में रहो ग़म-ज़दा या शाद रहो !!
ऐसा कुछ कर के चलो याँ कि बहुत याद रहो !!
मीर तक़ी मीर !!
फर्ज था जो मेरा निभा दिया मैंने !!
उसने मांगा वह सब दे दिया मैंने !!
वो सुनके गैरों की बातें बेवफा हो गई !!
समझ के ख्वाब उसको आखिर भुला दिया मैंने !!
जब पांव में बाप की पगड़ी रख दी जाए !!
तो मोहब्बत से हाथ छुड़ाना पड़ता है !!
फिर चाहे कोई वेवफा कहें या बेरहम !!
कुछ ‘फर्ज’ हैं जिन्हें निभाना पड़ता हैं !!
मेरे सच्चे प्यार को !!
दिल का कर्ज़ समझा !!
बेवफाई करना तुमने !!
अपना फर्ज समझा !!
मोहब्बत में सिर्फ !!
हक तो नहीं मिलते !!
कुछ फर्ज़ भी तो !!
अदा करने होते हैं !!
उतारा मैंने कर्ज था !!
क्यों होती हो उदास !!
ये तो मेरा फर्ज था !!
जिम्मेदारियों का ये जो फर्ज है !!
जीवन का सबसे बड़ा मर्ज़ है !!
मर्ज़ : रोग,व्याधि,व्यसन !!
चुकाता है कर्ज ,किसी का !!
ना होते हुए हक़दार !!
निभाता है बाप अपना फर्ज़ !!
बिना किसी तकरार !!
सनम तेरे प्यार में अपना !!
हर फर्ज़ दिल से निभाता हूं !!
सिर्फ तेरे खातिर मैं इस !!
दुनिया को तक भूल जाता हूं !!
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