farz shayari
कितना आसाँ था तिरे हिज्र में मरना जानाँ !!
फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते !!
ये ख़्वाब है ख़ुशबू है कि झोंका है कि पल है !!
ये धुँद है बादल है कि साया है कि तुम हो !!
जब भी दिल खोल के रोए होंगे !!
लोग आराम से सोए होंगे !!
ये कौन फिर से उन्हीं रास्तों में छोड़ गया !!
अभी अभी तो अज़ाब-ए-सफ़र से निकला था !!
तेरी बातें ही सुनाने आए !!
दोस्त भी दिल ही दुखाने आए !!
कैसा मौसम है कुछ नहीं खुलता !!
बूँदा-बाँदी भी धूप भी है अभी !!
ख़ुश हो ऐ दिल कि मोहब्बत तो निभा दी तू ने !!
लोग उजड़ जाते हैं अंजाम से पहले पहले !!
हम कि दुख ओढ़ के ख़ल्वत में पड़े रहते हैं !!
हम ने बाज़ार में ज़ख़्मों की नुमाइश नहीं की !!
यूँही मर मर के जिएँ वक़्त गुज़ारे जाएँ !!
ज़िंदगी हम तिरे हाथों से न मारे जाएँ !!
जिन के हम मुंतज़िर रहे उन को !!
मिल गए और हम-सफ़र शायद !!
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