अकेला ही दर्द सह रहा हुं मैं !!
इश्क़ का फर्ज अदा कर रहा हुं मैं !!
उनका जो फ़र्ज़ है वो अहल ए सियासत !!
जाने मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहां तक पहुंचे !!
दर्द तो अकेले ही सहते हैं सभी !!
भीड़ तो बस फर्ज अदा करती है !!
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ !!
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ !!
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें !!
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें !!
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम !!
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ !!
हुआ है तुझ से बिछड़ने के बा’द ये मा’लूम !!
कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी !!
तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो ‘फ़राज़ !!
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला !!
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं !!
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं !!
सुना है रब्त है उस को ख़राब-हालों से !!
सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं !!
हर एक खुशी यू फ़र्ज़ निभा कर चली गयी !!
मेरा पता गमो को बता कर चली गयी !!
जिंदगी में कोई दर्द ऐसे हैं जो जीने नहीं देते !!
और कुछ फर्ज ऐसे हैं जो मरने नहीं देते.
देखकर जब बच्चे को माँ-बाप मुस्कुराते है !!
हर बच्चे को उनमे अपने भगवान नजर आते है !!
मा-बाप अपना दर्द भूल जाते है।मर्ज भूल जाते है !!
बच्चे बडे होकर फर्ज भूल जाते है कर्ज भूल जाते है !!
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ !!
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ !!
अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलें !!
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलें !!
किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम !!
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ !!
हुआ है तुझ से बिछड़ने के बा’द ये मा लूम !!
कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी !!
तुम तकल्लुफ़ को भी इख़्लास समझते हो फ़राज़ !!
दोस्त होता नहीं हर हाथ मिलाने वाला !!
सुना है लोग उसे आँख भर के देखते हैं !!
सो उस के शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं !!
सुना है रब्त है उस को ख़राब-हालों से !!
सो अपने आप को बरबाद कर के देखते हैं !!
सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं !!
ये बात है तो चलो बात कर के देखते हैं !!
सुना है दिन को उसे तितलियाँ सताती हैं !!
सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं !!
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