नाराजगी शायरी
फैसला हो जो भी मंजूर होना चाहिए !!
जंग हो या इश्क भरपूर होना चाहिए !!
महफिल की बेरुखी भी नहीं शान !!
भी नहीं मैं अजनबी नहीं मेरी पहचान !!
भी नहीं !!
तू हमसे चाँद इतनी बेरुखी से बात करता !!
है न हम अपनी झील में एक चाँद उतरा !!
छोड़ आए हैं !!
लोगो की बेरुखी देखकर तो अब !!
हम खुश होते है ,आँसु तो तब आते है !!
जब कोइ प्यार के दो लफ्ज कहता है !
मेरी खामोशियां गुस्सा बहुत भरा पड़ा !!
है दिमाग में इश्क जो बेहिसाब करता हूं !!
उससे !!
तुम्हारी बेरूखी ने लाज रख ली !!
बादाखाने की,तुम आंखों से पिला !!
देते तो पैमाने कहाँ जाते !!
हमारी बेरुखी अब इस कदर बढ़ गई है !!
तुमसे बात तो मुमकिन है !!
पर हम कोशिश नहीं करना चाहते !!
हमारी चाहत को आपने हमारी !!
बेरुखी बना दी क्या भूल थी !!
हमारी जो आपने यह सजा दे दी !!
तेरी बेरुखी ने छीन ली है !!
शरारतें मेरी और लोग समझते हैं !!
कि मैं सुधर गया हूँ !!
जब-जब मुझे लगा मैं तेरे लिए खास हूँ !!
तेरी बेरुखी ने ये समझा दिया !!
मैं झूठी आस में हूँ !!
तेरी ये बेरूखी किस काम की रह जायेगी !!
आ गया जिस रोज अपने दिल को !!
समझाना मुझे !!
कुछ बेरुखी से ही सही !!
पर देखते तो हो ये आपकी !!
नफरत है कि एहसान आपका !!
कभी ऐसी भी बेरूखी देखी है हमने !!
कि लोग आप से तुम तक और तुम से जान तक !!
फिर जान से अनजान तक हो जाते हैं !!
तेरी ये बेरुखी हमसे देखी नहीं जाएगी !!
अगर ऐसा ही चलता रहा तो कसम से !!
इस दिल की धड़कने ज्यादा दिन तक धड़क पाएंगी !!
भरी सख्ती मिजाज़ों में नहीं पैदायशी !!
हैं हम किसी की बेरूखी झेली पिघल !!
के फिर जमे हैं हम !!
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