बेरुखी शायरी
बेरुखी इस से बड़ी और भला क्या होगी !!
एक मुद्दत से हमें उस ने सताया भी नहीं !!
तूँ माने या ना माने पर दिल दुखा तो है !!
तेरी बेरुखी से कुछ गलत हुआ तो है !!
तेरी बेरुखी में बहका हूं ना होश है !!
आज भी मुझे रख दे दिल पर हाथ !!
ज़रा पहचान जाऊं तुझे !!
सुकून ए दिल को नसीब तेरी बेरुखी ही सही !!
हमारे दरमियाँ कुछ तो रहेगा चाहे वो !!
फ़ासला ही सही !!
इन बादलो का मिजाज मेरे महबूब सा है !!
कभी टूट कर बरसते है कभी बेरुखी से !!
गुजर जाते हैं !!
तेरी सादगी का कमाल है मै इनायत समझ !!
बैठा तेरी बेरुखी भी चुप सी है मै मुहब्बत !!
समझ बैठा !!
शिकायत न करना किसी से बेरुखी !!
की !!इंसान की फितरत ही होती है !!
जो चीज़ पास हो उसकी कद्र नही करता !!
रहने दे अभी गुंजाइशें जरा अपनी !!
बेरुखी में इतना ना तोड़ मुझे कि !!
मैं किसी और से जुड़ जाऊँ !!
सिखा दी बेरुखी भी ज़ालिम ज़माने ने !!
तुम्हें कि तुम जो सीख लेते हो हम पर !!
आज़माते हो !!
मुख्तसर सी दिल्लगी से तो तेरी बेरुखी !!
अच्छी थी कम से कम ज़िंदा तो थे एक !!
कश्मकश के साथ !!
चुपके से हम ने भेजा था एक गुलाब उसे !!
खुशबू ने सारे शहर मैं तमाशा बना दिया !!
हासिल-ए-इश्क़ के बारे में,सोंचता हूँ जब !!
भी तेरा मिलना याद आता है,तेरी बेरुखी !!
नहीं !!
सोचते है सीख ले हम भी बेरुखी करना !!
सब से !!सब को महोब्बत देते देते हमने !!
अपनी क़दर खो दी है !!
तू हमसे चाँद इतनी बेरुखी से बात करता !!
है हम अपनी झील में एक चाँद उतरा !!
छोड़ आए हैं !!
अब शायद उसे किसी से मुहब्बत ज़ुरुर हो !!
मैं छीन लाया हूँ उस से उम्र भर की बेरुख़ी !!
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