इस क़दर जले है तुम्हारी बेरुख़ी से !!
के अब आग से भी सुकून सा मिलने लगा है !!
चाहते थे हम आपके अल्फाज बनना !!
पर आपने तो हमारी बेरुखी चुन ली !!
देखी है बेरुखी की आज हम ने इन्तेहाँ !!
हमपे नजर पड़ी तो वो महफ़िल से उठ गए !!
इस बेरूखी पे आपकी यूं आ गई हंसी !!
आंखें बता रही हैं ज़रा सी हया तो है !!
हज़ार शिकवे कई दिनों की बेरूखी !!
बस उनकी एक हँसी और सब रफा-दफा !!
बेवक्त बेवजह बेसबब सी बेरुखी तेरी !!
फिर भी बेइंतहा तुझे चाहने की बेबसी मेरी !!
हजारों जवाब से अच्छी मेरी ख़ामोशी !!
न जाने कितने सवालों की आबरू रख ली !!
नमक भी छिड़क कर देखा जख्मों पर !!
तेरी बेरुखी ज्यादा दर्द देती है !!
तेरी बेरुखी ने छीन ली है शरारतें मेरी !!
और लोग समझते हैं कि मैं सुधर गयी हूँ !!
अब गिला क्या करना उनकी बेरुखी का !!
दिल ही तो था भर गया होगा !!
इतनी बेरुखी दिखा कर के तुझे क्या मिलेगा !!
क्या तू रब है जो मरने के बाद मिलेगा !!
कहाँ तलाश करोगे तुम दिल हम जैसा !!
जो तुम्हारी बेरुखी भी सहे और प्यार भी करे !!
तूँ माने या ना माने पर दिल दुखा तो है !!
तेरी बेरुखी से कुछ गलत हुआ तो है !!
तूँ माने या ना माने पर दिल दुखा तो है !!
तेरी बेरुखी से कुछ गलत हुआ तो है !!
मुझसे दुरिया बनाकर तो देखो !!
फिर पता चलेगा कितना नजदीक हू में !!
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