Ajnabi shayari rekhta
वजह पुछने का तो मौका ही कहाँ मिला !!
वो लहजे बदलते गये और हम अजनबी बनते गये !!
जहाँ भूली हुई यादें दामन थाम लें दिल का !!
वहां से अजनबी बन कर गुज़र जाना ही अच्छा है !!
दिल चाहता है कि फ़िर ,अजनबी बन !!
कर देखें ,तुम तमन्ना बन जाओ !!
हम उम्मीद बन कर देखें !!
क्या ग़म है ,क्या ख़ुशी मालूम नहीं !!
अपना है की अजनबी मालूम नहीं !!
जिसके बिना एक पल नहीं गुज़रता कैसे !!
अजीब किस्सा है जिंदगी का !!
यहां अजनबी हाल पूछते हैं और !!
अपनों को खबर ही नहीं !!
क्या बताएं अपने हाल जनाब हम !!
अजनबियों को कुछ बताते नहीं और !!
हमारे अपने हमे पूछते ही नहीं !!
मुझे इस बात का “गम” नहीं कि बदल !!
गया ज़माना मेरी जिंदगी तो सिर्फ तुम हो !!
कहीं तुम ना “बदल” जाना !!
सीने में दबा दर्द में सब को दिखाऊंगा !!
अजनबी समझती है अब वो हमे !!
ये गम भरा किस्सा में अब सब को बताऊंगा !!
जब भी मिलती है अजनबी सी लगती है !!
ना जाने क्यूँ हर रोज़ ये जिन्दगी इतने रंग !!
बदलती है !!
तुझसे ज्यादा करीब तो अब तेरी तस्वीर लगने !!
लगी है !!जब भी मैं उसकी तरफ़ देखता हूं वो !!
भी मर तरफ़ देखती है !!
उन्हें तो आता है हमारे बगैर खुश रहना !!
पर हमारा क्या,हमारी तो खुशी ही वो है !!
अंजान शायर !!
काफी नजरे देखती है तुझे !!
लेकिन तेरा यू अनदेखा कर देना !!
सुकून देता है मुझे !!
कोई अजनबी फिर से ख़ास हो रहा है !!
लगता है मोहोब्बत हो गई फिर से ऐसा !!
एहसास हो रहा है !!
मेरे इस तन्हा सफर में कुछ दोस्तों ने मेरी !!
जिंदगी रंगीन कर दी पर मैंने उन्ही के खिलाफ !!
खड़े होके खुद की जिंदगी तबाह कर दी अंजान शायर !!
आज कल उन्हें हमारी बातें पसंद नहीं आती !!
जिनकी सुबह हमारी बातों से और रात हमारी !!
बातों से गुजरती थी एक अंजान शायर !!
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