Ajnabi shayari dp
अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ !!
ऐसे जिद्दी हैं परिंदे के उड़ा भी न सकूँ !!
अजनबी बनकर निकल जाओ तो अच्छा है !!
सुलग जाती है उम्मीदें बेवजह !!
जिंदगी अजनबी मोड़ पर ले आई है !!
तुम चुप हो मुझ से और मैँ चुप हूँ सबसे !!
ख़ुद को कितना भुला दिया मैंने !!
तू भी अब अजनबी सा लगता है !!
हमको तो बस तलाश नए रास्तों की है !!
हम हैं मुसाफ़िर ऐसे जो मंज़िल से आए हैं !!
मैं तो खुद अपने लिए अजनबी हूँ तू बता !!
मुझ से जुदा हो कर तुझे कैसा लगा !!
अजनबी ही रह गए कितनी मुलाक़ातों के बाद !!
कितनी बातें अनकही ही रह गई बातों के बाद !!
इस दुनिया मेँ अजनबी रहना ही ठीक है !!
लोग बहुत तकलीफ देते है अक्सर अपना बना कर !!
तेरा नाम था आज किसी अजनबी की ज़ुबान पे !!
बात तो ज़रा सी थी पर दिल ने बुरा मान लिया !!
अजनबी शहर में एक दोस्त मिला !!
वक्त नाम था पर जब भी मिला मजबूर मिला !!
कल तक सिर्फ़ एक अजनबी थे तुम !!
आज दिल की एक एक धड़कन की बंदगी हो तुम !!
अजनबी था तो मेरे जवाबों पर तुम्हे यकीन था !!
कम्बख्त जान का सबब बन गयी है ये जान पहचान !!
ऐसा न हो कि ताज़ा हवा अजनबी लगे !!
कमरे का एक-आध दरीचा खुला भी रख !!
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