अब हम समझे तेरे चेहरे पे तिल का मतलब !!
हुस्न की दौलत पे दरबान बिठा रखा है !!
हुस्न हर बार शरारत में पहल करता है !!
बात बढती है तो इश्क के सर आती है !!
ना कर जिद दीवाने हुस्न को बेपर्दा तकने की !!
हया जो फैलेगी रूखसार पर ,जान लेवा होगी !!
हुस्न वालों ने क्या कभी की खता कुछ भी !!
ये तो हम हैं सर इल्ज़ाम लिए फिरते हैं !!
मुझको मालूम नहीं हुस्न की तारीफ फ़राज़ !!
मेरी नज़रों में हसीन वो है जो तुझ जैसा हो !!
तफ़रीक़ हुस्न-ओ-इश्क़ के अंदाज़ में न हो !!
लफ़्ज़ों में फ़र्क़ हो मगर आवाज़ में न हो !!
हुस्न को हुस्न बनाने में मिरा हाथ भी है !!
आप मुझ को नज़र-अंदाज़ नहीं कर सकते !!
चेहरों की इतनी फ़िक्र क्यूँ है ,रंगों की इतनी क़द्र क्यूँ है ?
हुस्न अस्ल किरदार का है ,गोरा काले से बेहतर क्यूँ है ?
दिल जो अजब शहर था ख्यालों का !!
लूटा हुआ है हुस्न वालों का !!
हुस्न-ए-ख़ुमारी का आलम क्या पूछते हो !!
गजरा,चूड़ी ,काजल,बिंदी ,उफ्फ्फ तुम क्या पूछते हो !!
कितनी तारीफ करूं उस जालिम के हुस्न की !!
पूरी किताब तो बस उसके !!होठों पर ही खत्म हो जाती है !!
पलट कर देख ये ज़ालिम तमन्ना हम भी रखते है !!
तुम अगर हुस्न रखती हो तो जवानी हम भी रखते है !!
हुस्न की मल्लिका हो या साँवली सी सूरत !!
इश्क अगर रूह से हो तो हर चेहरा कमाल लगता है !!
उसके हुस्न की तारीफ फ़क़त इतनी सी है !!
जहाँ से गुजर जाए !!लोग मिसाल देते है !!
ओ मस्त-ए-नाज़ हुस्न तुझे कुछ ख़बर भी है !!
तुझ पर निसार होते हैं किस किस अदा से हम !!
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