एक शराब की बोतल दबोच रखी है !!
तुझे भुलाने की तरकीब सोच रखी है !!
अब तो ज़ाहिद भी ये कहता है बड़ी चूक हुई !!
जाम में थी मय-ए-कौसर मुझे मालूम न था !!
हमने पूछा कैसे,वो चले गए !!
हाथों मे जाम देकर !!
मिले तो बिछड़े हुए मय-कदे के दर पे मिले !!
न आज चाँद ही डूबे न आज रात ढले !!
तुम्हारी आँख की तौहीन है जरा सोचो !!
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है !!
टूटे हुए पैमाने बेकार सही लेकिन !!
मय-ख़ाने से ऐ साक़ी बाहर तो न फेंका कर !!
कभी देखेंगे ऐ जाम तुझे होठों से लगाकर !!
तू मुझमें उतरता है कि मैं तुझमें उतरता हूँ !!

किसी प्याले से पूछा है सुराही ने सबब मय का !!
जो खुद बेहोश हो वो क्या बताये होश कितना है !!
देना वो उसका सागर व मय याद है निजाम !!
मुह फेर कर उधर को इधर को बढा के हाथ !!
कुछ भी बचा न कहने को हर बात हो गई !!
आओ कहीं शराब पिएँ रात हो गई !!
मय बरसती है फ़ज़ाओं पे नशा तारी है !!
मेरे साक़ी ने कहीं जाम उछाले होंगे !!
मुझे ऐसी शराब बता ऐ दोस्त !!
नशा-ए-इश्क उतार पाऊ मै !!
मिले ग़म से अपने फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना !!
कि टपक पड़े नज़र से मय-ए-इश्रत-ए-शबाना !!
बहुत अमीर होती है ये शराब की बोतलें !!
पैसा चाहे जो भी लग जाए सारे ग़म ख़रीद लेतीं हैं !!
तुम्हें जो सोचें तो होता है कैफ़ सा तारी !!
तुम्हारा ज़िक्र भी जामे-शराब जैसा है
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